अजीब बात है ना! कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली। कहाँ चंदन-सा पवित्र काष्ठ और कहाँ अफीम-सा नशा। किंतु चोंकिएगा नहीं, इन दोनों का मूल एक ही है। और यह मैं किसी चंडू खाने में बैठकर नहीं लिख रहा हूँ। चंडूखाने से याद आया, आप चंडू का अर्थ तो जानते होंगे। चंडू है अफीम और चंडू शब्द का विकास हुआ है द्रविड़ मूल के चंटू शब्द से। चंटू का अर्थ है घिसना, लेप बनाना या सना हुआ लेप। एक विशेष काष्ठ के सुगंधित लेप के कारण ही यह चण्टू बना चण्डन > चन्दनम्> चन्दन। पश्चिम की ओर इसकी यात्रा संदल (फ़ारसी) और सैंडलवुड के रूप में हुई और पूर्व की ओर कोरिया, जापान तक यह चंटू > चंडू के रूप में पहुंचा। अंतर यह भी रहा की पश्चिम की ओर तो यह चंदन का ही पर्याय बना रहा और इसकी सुगंध बनी रही किंतु पूर्व की ओर नशीले पदार्थ अफीम के लेप के लिए प्रयुक्त हुआ, जो पीने के लिए प्रयुक्त होता है। गंध भी बदली, अर्थ भी।
चीन से चंडू पुनः पश्चिम की ओर एक स्वतंत्र शब्द के रूप में पहुँचा और पश्चिम से फिर भारत लौटा। अब भारत के पास एक ही माता-पिता की दो संतानें हैं - चंदन और चंडू।
यह आप पर है कि आप इसे चंड़ूखाने की गप समझें या शब्दों की अर्थ यात्रा जो अपने आप में बहुत विचित्र होती है।
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स्वीकरण:
ब्लॉग के अभिषेक अवतंस के ट्वीट से प्रेरित
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