चोर संस्कृत √चुर् (चोरी करना) से बना है चोर, चौर। चोर शब्द पालि, प्राकृत, अपभ्रंश से चलकर कोंकणी, मराठी गुजराती सहित उत्तर और पूर्व भारत की सभी आर्य भाषाओं में विद्यमान है। चोर वह है जो दूसरों की चीजें ऐसे उठा ले कि किसी को पता ही न लगे, छिपकर पराई वस्तु का अपहरण करे । स्वामी की अनुपस्थिति या अज्ञान में छिपकर कोई चीज ले जानेवाला।
चोर परिवार में अनेक मुहावरे और लोकोक्तियाँ हैं। चोर की दाढ़ी में तिनका (चोर का सदा सशंकित रहना ), चोर के घर छिछोर, चोर के घर ढिंढोर (पक्के बदमाश से किसी नौसिखुए का उलझना)। चोर के घर में मोर पड़ना (धूर्त के साथ धूर्तता होना)। चोर के पाँव कितने (चोर की हिम्मत कम होती है)। कुछ लोग कामचोर, मुँहचोर तो होते ही हैं, चितचोर भी होते हैं और कन्हैया जैसे चितचोर लोगों के लाडले भी।
चोट्टा हिंदी में -टा प्रत्यय किसी को कमतर बताने के लिए (हीनार्थ द्योतक) है; जैसे: रोम + टा - रोंगटा, काला + टा- कलूटा। इसी प्रकार चोर + टा- चोरटा। चोरटा से ही बनता है चोट्टा, छोटी-मोटी चोरियाँ करने वाला, उठाईगीर। स्त्रीलिंग चोरटी, चोट्टी।
उचक्का भी चोर ही है, अपने करतब में अधिक फुर्तीला। ऐसा धूर्त, बदमाश, जो औचक (अचानक) ही उपस्थित होकर दूसरे की वस्तु आदि छीनकर भाग जाए। शातिर चोर जो दिन-दहाड़े माल उठाले, वो घटिया चोर जो छोटी-मोटी चीज़ तुरत ले भागे।
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