~गुरुजी इंद्र का अर्थ?
~इंद्र का अर्थ- मघवा।
~मघवा क्या?
~मघवा माने विडोजा।
~विडोजा?
~हाँ-हाँ, इंद्र।
बेचारा शिष्य सिर न खुजाए तो क्या करे।
इधर कुछ दिनों से "फ़्रिंज एलिमेंट्स" के हिंदी समानार्थक पर हो रही बहस से यह 'इंद्र- मघवा- विडोजा' प्रसंग याद आ गया।
समय के साथ-साथ नए शब्द आते हैं और भाषा को संपन्न करते हैं। हाल की घटनाओं ने सभी भारतीय भाषाओं को एक शब्द दिया है: "फ़्रिंज एलिमेंट्स"। इसके हिंदी पर्यायों के बारे में विद्वानों में चर्चा हो रही है। अर्थ ढूँढने वालों के दो धड़े दिखाई पड़ रहे हैं। एक जो राजनीतिक तंज के रूप में इसे ले रहे हैं। वे लोग इसका अर्थ लंपट, धूर्त, बाहरी, महत्वहीन कह रहे हैं। दूसरे धड़े के लोग हैं जो अर्थ तो ईमानदारी से ढूँढ़ रहे हैं लेकिन तैरना न जानने से भाषा सागर में छटपटा रहे हैं। ऐसे लोग इसके अनुवाद में जो शब्द दे रहे हैं वे कुछ इस प्रकार हैं: आनुषंगिक तत्व, बाहरी तत्व, किनारे के लोग, अनधिकृत तत्व आदि।
कुछ समझदार लोग सुरक्षित मार्ग के तौर पर इसे फ़्रिंज तत्व ही कह रहे हैं। ठीक भी है क्योंकि यह हिंदी में ही नहीं, अन्य भाषाओं में भी 'तुरंता भोजन' की तरह चल पड़ा है । जो भी हो, इसकी आर्थी दिशाओं की ओर विचार तो किया जा सकता है।
अंग्रेजी कोशों के अनुसार fringe का मुख्य अर्थ है किसी वस्त्र या तस्वीर के हाशिए या बाहरी किनारों पर होने वाली सजावट। इसके लिए हिंदी में लोक प्रचलित शब्द हैं: किनारी, लटकन, झब्बा या फुँदना। मुख्य वस्त्र के साथ यह सजावटी ताम-झाम है जिसके बिना भी काम चल सकता है।
मानव संसाधन (HR) प्रबंधन की शब्दावली में किसी कर्मचारी को नियोक्ता के द्वारा नियमित वेतन के अतिरिक्त दी जाने वाली सुविधाएँ भी फ़्रिंज लाभों में गिनी जाती हैं। इस संदर्भ में इन्हें आनुषंगिक लाभ कहा जाता है।
किसी राजनीतिक विचारधारा के संदर्भ में फ्रिंज वे लोग हैं जो मुख्यधारा से हटकर उग्र, धर्मांध, उन्मादी विचारधारा रखते हैं। उन्हें लुनेटिक फ़्रिंज भी कहा जाता है। वर्तमान संदर्भ में फ़्रिंज के लिए यही अर्थ निकटतम है, पर यह जानते-समझते हुए भी कोई इसे स्वीकारेगा नहीं। दूसरे शब्द हो सकते हैं: लटकन-झब्बा या लटकन-फुँदना - शुद्ध देसी शब्द; लेकिन आजकल पश्चिम मोह में देसी शब्द कौन स्वीकार करे। तब एक ही विकल्प बचता है: फ़्रिंज एलिमेंट्स को फ़्रिंज एलिमेंट्स ही रहने दें, कोई नाम न दें।
बहुत ही सार्थक लेख। हालांकि ट्वीटर पर ओम थानवी जी का लिखा चिरकुट मौजूदा संदर्भ में सीधे जुड़ता लग रहा है... हरकत का सार समझाते हुए...
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