बचपन में स्वेटर को अपनी उम्र के लोग 'स्वीटर' कहते थे। इसे हमने सीधे-सीधे अंग्रेजी के 'स्वीट' से जोड़ा (बच्चों को स्वीट शब्द से यों भी अधिक मोह होता है!)। जो पहनने में अच्छा लगे, जाड़ों में जिसे पहनना मीठा लगे, वह स्वीटर। आगे चलकर स्वेटर शब्द भी जानकारी में आया तो हमने सोचा स्वीटर > स्वेटर। नाम ही तो बदला है, गुण स्वभाव तो मीठा ही है! जब शब्दों की व्युत्पत्ति खोजने का कीड़ा कुछ ज्यादा ही काटने लगा तो पता लगा कि हमारा स्वीट मीठा ना होकर कुछ और ही स्वाद का है।
संस्कृत में एक धातु है √स्विद्
जिसका अर्थ है पसीना होना, गीला होना आदि। इसी शब्द से बना है स्वेद, अर्थात पसीना, श्रम जल। स्वेद के लिए लोक में अधिक प्रचलित पसीना शब्द की ओर चलें। कुछ लोग पसीना को फ़ारसी का मान लेते हैं जो ठीक नहीं है। यह पसीना तो सीधे-सीधे स्वेद से बना है। स्वेद से प्र उपसर्ग लगाकर प्रस्वेद, प्रस्वेदन से पसीना; या दूसरा मार्ग है - प्र+स्विद्+क्त = प्रस्विन्न > पसिन्नअ > पसीना। संस्कृत में जो स्वेद है, वही अवेस्ता भाषा में ह्वेद हो जाता है।
अब थोड़ा स्वेटर की ओर मुड़ा जाए। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि यह स्वेटर भी संस्कृत स्वेद से बना है। भाषा वैज्ञानिक मानते हैं कि पुरा-भारोपीय मूल की कोई क्रिया *स्वीद थी जिससे अनेक यूरोपीय भाषाओं में यह शब्द पहुँचा। अंग्रेजी का स्वेटर भी स्वेट् क्रिया से है और स्वेट् (सं.) का अर्थ है पसीना। जो स्वेट (पसीना) लाए वह स्वेटर! आजकल एक स्वेट शर्ट शब्द भी चलता है, अर्थ है स्वेट (पसीना) लाने वाली शर्ट (कमीज़)।
हिंदी/उर्दू में पसीना से जुड़े अनेक मुहावरे हैं, इतने कि हम पढ़ते-पढ़ते पसीना-पसीना हो जाएँ। आप जब क्रोध में दाँत पीस रहे होते हैं तब अगले के दाँतों पसीना आ रहा होता है और कोई तीसरा किसी काम के लिए खून पसीना एक कर रहा होता है क्योंकि वह जानता है पसीना बहाए बिना सफलता नहीं मिलती। कुछ लोग यह कहते हुए पाए जाते हैं कि जहाँ आपका पसीना गिरेगा वहाँ हमारा ख़ून करेगा, उनकी करनी चाहे इससे उलट ही क्यों न हो। कहीं पसीना छूटता है तो कहीं पसीने की भरपाई होती है। कहते हैं कभी किसी को ठंडा पसीना भी आ जाता है।
हमें तो लाला माधव राम जौहर का एक शेर याद आ रहा है:
"अब इत्र भी मलो तो तकल्लुफ़ की बू कहाँ
वो दिन हवा हुए जो पसीना गुलाब था!"
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